भक्तामर स्तोत्र एक प्रसिद्ध जैन संस्कृत प्रार्थना है। इसकी रचना आचार्य मनतुंगा (सातवीं शताब्दी) ने की थी। भक्तमार नाम दो संस्कृत नामों, "भक्त" (भक्त) और "अमर" (अमर) के संयोजन से आया है।

सम्यक विश्वास - शुद्ध और पूर्ण आत्मा में विश्वास होना ही सम्यक् विश्वास है। ईश्वर में दृढ़ विश्वास जरूरी है। सम्यक ज्ञान - अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को जानना ही सही ज्ञान है। सम्यक ज्ञान संदेह और अनिश्चय से मुक्त होना चाहिए। सही ज्ञान चीजों की प्रकृति को ठीक वैसे ही प्रकट करता है जैसे वे हैं और निश्चित रूप से।

i. पूरी श्रद्धा और एकाग्रता के साथ 48 श्लोकों का जप करें। ii. 48 यंत्रों पर एकाग्रता। iii. यंत्र का अभिषेक (स्नान) करने के बाद माथे और आंखों पर यंत्र के पवित्र जल का छिड़काव। iv. 48वें मंत्र का 108 बार लौंग या बादाम या अक्षत (चावल) के साथ जाप करें। v. 7वें या 21वें दिन सभी 48 श्लोकों, मंत्रों और ऋद्धि को पढ़कर विधान का आयोजन करना।

1 - सादे चावल के दानों के साथ-साथ चावल के दानों को चंदन के पेस्ट से लेपित किया जाता है, जिन्हें क्रमशः 'अक्षत' और 'पुष्प' के नाम से जाना जाता है। 2 - सूखे नारियल के छोटे चौकोर टुकड़े और वही टुकड़े चंदन के लेप ('नैवेद्य' और 'दीप') के साथ लेपित 3 - धूप या लौंग को गर्म कोयले पर या जलती हुई लकड़ी पर छिड़कना चाहिए ताकि वातावरण में सुगंध फैले। 4 - दीप प्रज्ज्वलित करना - दीपक गाकर और घुमाकर भगवान को स्तुति करना। 5 -  बादाम, काजू, सूखे खजूर, पिस्ता आदि सूखे मेवे चढ़ाएं।