विधान विधि

भक्तामर स्तोत्र जाप विधि

• कौन उच्चारण कर सकता है?

रोगी स्वयं या उसके पारिवारिक जन या कोई आध्यात्मिक उपचारक जो अपने रोगी का रोग निदान या
अभीष्ट प्राप्ति में सहायक है जो अध्यात्मिक उपचार पर विश्वास रखते हैं, वह भक्तामर स्तोत्र का उच्चारण कर
सकते हैं ।

• कैसे पढ़ना चाहिए?

सर्वप्रथम अपने उद्देश्य प्राप्ति को लक्ष्य बनाकर अपने श्लोक का चयन करें। प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में 4 से 7 बजे के मध्य
स्नान आदि कार्यों से निवृत होकर, स्वच्छ धुले हुए हल्के रंग के वस्त्र धारण कर अपने इष्ट परमात्मा का स्मरण,
ध्यान करते हुए, 25 से 30 मिनट ॐ का उच्चारण करें या ध्यान अवस्था में बैठ जाएं और अपने सभी विचारों से
मुक्त हो जाएं। अभीष्ट श्लोक का यंत्र या पूर्ण भक्तामर का यंत्र अपने सम्मुख स्थापित करें। यथाशक्ति 21 दिन
Copper या Gold के यंत्र का अभिषेक करें। दीप-धूप प्रज्वलित करते हुए वातावरण को सुगंधमय बनायें ।

तत्पश्चात् हल्की मधुर ध्वनि में उच्चारणपूर्वक, मीरा जैसी दीवानगी के साथ कम से कम 27 बार श्लोक, 108
बार रिद्धी, 108 बार मंत्र का जाप करें।

• उत्तम फल की प्राप्ति के लिए

अभिषेक का जल रोगी या जाप करने वाला व्यक्ति स्वयं अपने मस्तक, नेत्र, कण्ठ और नाभि पर लागए। कम से
कम 21 दिन संयमपूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए और 21 दिन बिना नमक का भोजन करें । क्योंकि यह
आत्मा का उपचार है। आध्यात्मिक उपचार है। मन-वचन-काय पूर्वक शारीरिक शुद्धि, आत्मिक शुद्धि का यह
दिव्य अनुष्ठान आपके जीवन में सुख-शान्ति-समृद्धि-आनन्द-प्रतिष्ठा, मातृत्व का सुख और इन सबसे आगे मोक्ष
लक्ष्मी का वरण करने में आपके जीवन की इस यात्रा में एक दिव्य यान बनेगा ।

• स्वर ज्ञान का भी ध्यान रखना जरूरी है। शुभ कार्य हेतु चंद्रस्वर चलना जरूरी है ।
• पाठ प्रारंभ करते समय ऋषभदेव की दिव्य शक्ति का आह्वान कर आचार्य मानतुंग स्वामी को साक्षी मानकर
पूर्व या उत्तर दिशा में मुख कर के भक्तामर यंत्र को उच्चआसन पर विराजमान कर साक्षात्कार करें।
• योग प्राणायाम पूर्वक आप ध्यान में आती-जाती श्वास पर ध्यान करते हुए नाड़ी शोधन करें जिस कार्य को
सिद्ध करना है। पहले उसकी सफलता का अहसास करे ।
• वस्त्र अखंड हो और सिर ढका हो |
• भक्तामर पाठ करते समय संकल्प, सकलीकरण अवश्य करे। जिस प्रकार कउपेपवद के बिना रिजल्ट नहीं
मिलता इसी तरह बिना संकल्प के पाठ का फल नहीं मिलता। सबसे पहले आप अपने मुख्य 9 स्थान सिर,
मस्तक, नेत्र, नाक, मुख, कान, कष्ठ, हृदय एवं नाभि पर णमोकार मंत्र की अंतरमन में स्थापित करे ।
• ध्यान में विचार करे- ध्यान अवस्था में मैं मानतुंग स्वामी शक्ति स्वरूप आत्मा हूँ। मैं इस कार्य सफलता हेतु
इस काव्य की साधना कर रहा हूँ।
• पाठ पूर्ण होते हुए कहें- अनंतशक्ति स्वरूपोऽहं, अनंतज्ञान स्वरूपोऽहं, सर्वकार्य सिद्धोऽहं, शारीरिक आधि-
व्याधि रहितोऽहं, सर्वमनोकामनापूर्ण स्वरूपोऽहं, सिद्ध स्वरूपोऽहं, कषायरहितोऽहं निर्विकार रहितोऽहं ।
• अंत में विसर्जन पाठ पढ़कर अपने शरीर का स्पर्श कर जो स्वर चल रहा हो उस दिशा की ओर मुख करके
दिग्वंदना करते हुए ।

अच्चेमि पूज्जेमि वंदामि णमस्सामि दुक्खक्खओ कम्मक्खो बोहिलाहो,

सुगइगमण, समाहि मरणं
जिन गुण सम्पत्ति होउ मज्झं

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