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भक्तामर महिमा

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by admin

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श्री भक्तामर का पाठ करो, नित प्रात: भक्ति मन लाई|
सब संकट जाएँ नशाई ||
जो ज्ञान-मान- मतवारे थे, मुनि मानतुंग से हारे थे|
उन चतुराई से नृपति लिया बहकाई| सब संकट जाएँ नशाई ||1||
मुनि जी को नृपति बुलाया था, सैनिक जा हुक्म सुनाया था|
मुनि वीतराग को आज्ञा नहीं सुहाई| सब संकट जाएँ नशाई ||2||
उपसर्ग घेर तब आया था, बलपूर्वक पकड़ मंगाया था|
हथकड़ी-बेड़ियों से तन दिया बंधाई| सब संकट जाएँ नशाई ||3||
मुनि कारागृह भिजवाए थे, अड़तालीस ताले लगाये थे|
क्रोधित नृप बाहर पहरा दिया बैठाई| सब संकट जाएँ नशाई ||4||
मुनि शांत भाव अपनाया था, श्री आदिनाथ को ध्याया था|
हो ध्यान-मग्न भक्तामर दिया बनाई| सब संकट जाएँ नशाई ||5||
सब बंधन टूट गए मुनि के, ताले सब स्वयं खुले उनके|
कारागृह से आ बाहर दिए दिखाई| सब संकट जाएँ नशाई ||6||
राजा नत होकर आया था, अपराध क्षमा करवाया था|
मुनि के चरणों में अनुपम भक्ति दिखाई| सब संकट जाएँ नशाई ||7||
जो पाठ भक्ति से करता है, नित ऋषभ चरण चित्त धरता है |
जो रिद्धि मन्त्र का विधिवत जाप कराई| सब संकट जाएँ नशाई ||8||
भय-विघ्न-उपद्रव टलते हैं, विपदा के दिवस बदलते हैं|
सब मनवांछित हो पूर्ण, शांति जाई| सब संकट जाएँ नशाई ||9||
जो वीतराग आराधन हैं, आत्म-उन्नति का साधन हैं|
उनसे प्राणी का भव-बंधन कट जाई| सब संकट जाएँ नशाई ||10||
कौशल सुभक्ति को पहचानो, संसार-दृष्टि बंधन जानो|
लो भक्तामर से आत्म-ज्योति प्रकटाई| सब संकट जाएँ नशाई ||11||

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